Wednesday 19 January 2011

इंतज़ार में चाँद

रोज़ मैं देखूं , चाँद खड़ा है,रस्ता मेरा देख रहा है|
फैलाए तारों की चादर, इकटक मुझको घूर रहा है|


मैं पूछूं, क्यों री चंदा, मुझमें क्या तेरा धरा है?
आते जाते , पीछे पड़े, क्या लाज शर्म को त्याग चुका है?
बरसाके  चांदनी का क्षीर , तारों के बीच राजा बना है!


चंदा बोला:






देख इधर ओ राही , मैंने तेरे लिए ही ये रूप रचा है,
मुझमें  तेरा क्या नहीं, तेरा सब तो मुझमें  ही बसा है|
क्यों खफा है सबसे तू, तेरी राहों में मेरा सर झुका है|


जीवन ही नहीं,  मौत से भी मेरी राह जुदा है|
तुझे देख हैरानी हो, कि क्यूं तू जीवन-मृत्यु की डोर पे खड़ा है|


तेरा जीवन , मेरी भेंट है, क्यूं तू इसको फ़ेंक रहा है,
तेरी मृत्यु मेरा हक़ है, तू क्यूं उसे समेट रहा है|


देख तू मुझमें, किसकी प्रतिमा को मैंने खुद मैं नहीं धरा है,
तेरे लिए ही निकलता हूँ मैं, वरना क्या यहाँ पड़ा है|


आने दे हृदय में अपने, क्यों तू मुझको रोक रहा है,
मैं तेरा पूरक, और तू  मुझमें  बसा है|




मैंने कहा:


चुप कर चंदा, झूठी है तू,
इक पक्ष दिखे, इक पक्ष छिप जाती है तू|


 ह्रदय में मेरे बस  जीवन  का श्राप भरा है,
 जीवन या मृत्यु, सबसे नाता  टूट चुका है|


चली जा, छुप जा उन बादलों के पीछे,
या खो जा सूरज की रौशनी में कहीं|
तेरा मोह मुझे लुभाए ,
वो पल अब बीत चुका है|


जीवित मृत सा चलता हूँ मैं,
पर यही  तेरी भी चाल है|
जीवन की रौशनी बिखेरती ,
मृत्यु का अन्धकार है|


चाँद बोला:


कर ले लाख कोशिश तू,पर तेरा नसीब मुझसे ही जुड़ा है |
लाखों तालों के पीछे , मेरा ही प्रेम एक प्रेम बसा है|


खोल रही हूँ इक इक करके, तब तक मैंने सब्र धरा है|
जा तू रूठ कर अभी, पर मुझमें ही तेरी राह है|


मैंने कहा:


क्यों पूरा करना चाहे उसे तू, जिसको ये मन छोड़ चुका है,
बस कविता को अंत मिले अब, लेखक तुझसे उब चुका है|


तेरी चांदनी पिघलाए मुझे, मन को उस पल का इंतज़ार रहेगा,
तब तक तेरे और मेरे ह्रदय मैं , बस उस पल का आस रहेगा|

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