Tuesday 14 September 2010

नौकरी में ही सब है!!

"नौकरी  में ही  सब  है ", जब  ये  शब्द  मेरे  कानों  पे  परे  तो  में  तिलमिला  उठा | इस  सत्य  को  तो  शायद मैं  भुला  ही  चुका  था , मानो  जैसे  ये  शब्द , सत्य  और  असत्य  की सीमा  से  परे  हो गए थे  , जैसे  कि  मेरा  अस्तित्व  इसी  सत्य  के  अन्दर  बसा  हुआ  है , और  मैं  इसकी  "सत्यता" पे  कभी  ऊँगली  उठा  ही  नहीं  सकता | पर  आगे  आने  वाले  शब्द  थे , "तुम  अभी  नहीं समझोगे ", मानो  जैसे  अंजली , राहुल  से  कह  रही  हो , "कुछ  कुछ  होता  है  राहुल , तुम  नहीं  समझोगे ". पर मैं  समझता  हूँ , कम  से  कम  समझने  का  दावा  तो  जरूर  करता  हूँ , वरना इस  निर्दयी  और  निमार्मिक  नौकरी  के  पीछे  दिन  रात  क्यूं  भागता | पर  शायद   में  उनकी  दृष्टि  से  नहीं  समझ  पा  रहा  था , क्यूंकि  विगत  शब्द  मेरे  बाबूजी  के  मुख से  निकले  थे |

Sunday 5 September 2010

The Vultures of freedom!

From the clueless union of two souls,
    Was I conceived, to tread on this world!


Cast was I into the mold of their culture,
    But the shell was broken down and I was taken by the vultures!


Those vultures ate up the moss of society on my soul,
    And when I died, caught in those talons, my rebirth met my pristine soul.


And I became a vulture too, to eat up the moss society creates,
    Although, I am left alone and weariness grates.