Wednesday 25 August 2010

अँधेरी रौशनी और तुम !

तुम कौन हो ? थोड़ी सी छुपती , थोडा उमड़ती !
जैसे अँधेरे में छुपकर, धूमिल रौशनी बिखेरती!!

यूँ होता है तेरे होने का एहसास, उन अँधेरी उजालो में,
कि बस घिरा और उलझा हूँ लाखों सवालों में!

तुम मेरी मंजिल तो नहीं, ना ही  तुम मेरा रास्ता हो!
पर तुम संग , यही लगे की हमारा हमेशा का वास्ता हो!!